देश के गरीब परिवारों की महिलाओं को मिट्टी के चूल्हे से निजात दिलाने के प्रयास

देश के गरीब परिवारों की महिलाओं को मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी या कोयले से खाना पकाने से मुक्ति दिलाने के मकसद से मई, 2016 में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत की गई थी, लेकिन रसोई गैस सिलेंडराें की बढ़ती कीमतों ने इस योजना के मकदस काे अंधकारमय कर दिया है

 

 देश के गरीब परिवारों की महिलाओं को मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी या कोयले से खाना पकाने से मुक्ति दिलाने के मकसद से मई, 2016 में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत की गई थी, लेकिन रसोई गैस सिलेंडराें की बढ़ती कीमतों ने इस योजना के मकसद काे अंधकारमय कर दिया है। जो लोग इस महंगाई बेरोजगारी के दौर में दो जून रोटी का जुगाड़ करने के लिए बड़ी मशक्कत कर रहे हैं, उनके लिए गैस सिलेंडर भरवाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। बढ़ती महंगाई के इस दौर में सैंया तो बहुत ही कमात है महंगाई डायन खाए जात है वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है। लगातार बढ़ रही महंगाई ने हर घर की रसोई का बजट बिगाड़ दिया है।

ऐसे में उज्जवला योजना के तहत मिले गैस सिलेंडरों को भरवाना गरीब परिवारों के लिए मुश्किल भरा हो गया है और उन्होंने वापस लकड़ी वाले चूल्हों की ओर रुख अख्तियार करना पड़ रहा है। उज्जवला योजना के शुरुआती चरण में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले पांच करोड़ परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया था। वर्ष 2014 यानी केंद्र में एनडीए के सत्ता में आने के बाद से अप्रेल, 2022 तक इस योजना के तहत पूरे देश में 9,56,57,999 करोड़ कनेक्शन दिए जा चुके हैं। जबकि वर्ष 1955 से 2014 के बीच के छह दशकों में महज 13 करोड़ एलपीजी कनेक्शन ही जारी हुए थे। वैसे देश में कुल कनेक्शनों की संख्या अब 30.53 करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार की यह योजना तो दुरुस्त थी, लेकिन लागू करने से पहले जमीनी स्तर पर कुछ व्यावहारिक दिक्कतों की ओर ध्यान नहीं दिया गया। मिसाल के तौर पर थोक के भाव कनेक्शन तो बांटे गए, लेकिन यह सुनिश्चित नहीं किया गया कि लोग उसे जारी रखें और नियमित तौर पर उसका इस्तेमाल करें।

 

 चूल्हे के धुएं से देश में हर साल 13 लाख लोगों की मौत

 

योजना को लेकर लांसेट ने अपने एक अध्ययन में बताया था कि भारत में पारंपरिक चूल्हों या स्टोव पर लकड़ी या दूसरे ईंधन के जरिए खाना पकाने की वजह से फेफड़ों में जाने वाले धुएं के कारण पैदा होने वाली बीमारियों की चपेट में आकर सालाना कई लाख लोगों की मौत हो जाती है। भारत 24 करोड़ से अधिक घरों का देश है, जिनमें से करीब 10 करोड़ परिवार अभी भी एलपीजी को खाना पकाने के ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने से वंचित हैं और उन्हें खाना पकाने के लिए प्राथमिक स्रोत के रूप में लकड़ी, कोयले, गोबर के उपले, केरोसिन तेल जैसी चीजों का इस्तेमाल करना पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार खाना पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाले प्रदूषणकारी ईंधन की वजह से भारत में हर साल 13 लाख लोगों की मौत होती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ठोस ईंधन से उत्पन्न घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से साल 2010 में 35 लाख लोगों की मौत हुई।

 

मुफ्त का ईंधन भी है बड़ा कारण

 

 

यह एक बेहतरीन योजना थी, लेकिन सरकार ने इसे जल्दबाजी में लागू कर दिया। केंद्र ने यह जानने के लिए रेटिंग एजेंसी क्रिसिल से एक अध्ययन कराया था कि गरीब परिवारों को एलपीजी पर खाना पकाने के लिए कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है, लेकिन अध्ययन के नतीजों का इंतजार किए बिना योजना लागू कर दी गई। इसके लागू होने के महीने भर बाद जब अध्ययन के नतीजे सामने आए तो व्यावहारिक खामियों का खुलासा हुआ।

क्रिसिल ने 13 राज्यों के 120 जिलों में एक लाख से ज्यादा लोगों के सर्वेक्षण के बाद दी गई रिपोर्ट में कहा था कि 86 फीसदी लोगों के मुताबिक एलपीजी एक महंगा सौदा है। इसलिए वे लकड़ी और कोयले जैसे ईंधनों पर ही निर्भर हैं। इसी तरह 83 फीसदी ने रिफिल की कीमत बहुत ज्यादा होने की बात कही थी। रिपोर्ट में रिफिल सिलेंडर की कीमतों में सब्सिडी के जरिए कटौती की सिफारिश की गई थी। क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ग्रामीण इलाकों की 37 फीसदी आबादी को खाना पकाने का ईंधन मुफ्त में मिलता है। ऐसे में वह हर दो महीने में एलपीजी सिलेंडर के लिए राशि खर्च नहीं करेंगे।

 

 

कनेक्शन बढ़े, सिलेंडरों की इस्तेमाल नहीं

 

इस योजना के शुरू होने के बाद देश में एलपीजी कनेक्शनों की तादाद में तो 12.26 फीसदी की वृद्धि हुई, लेकिन गैस सिलेंडरों का इस्तेमाल महज 9.83 फीसदी ही बढ़ा है। आंकड़ों का यह फर्क उज्ज्वला योजना के दामन पर दाग लगाता है। इससे साफ है कि पहला सिलेंडर खत्म होने के बाद बहुत-से लोगों ने दूसरा सिलेंडर खरीदा ही नहीं है।

 तीन महीने तक सिलेंडर नहीं लिया ताे कनेक्शन निष्क्रिय

उज्ज्वला योजना के तहत मिले कनेक्शन में हर तीन महीने पर रिफिल सिलेंडर नहीं लेने की स्थिति में वितरक उनको निष्क्रिय कनेक्शन सूची में डाल देते हैं। जनवरी, 2018 के आंकड़ों के मुताबिक देश भर में फिलहाल ऐसे 3.82 करोड़ निष्क्रिय कनेक्शन हैं। दूसरी ओर केंद्र सरकार का दावा है कि उज्ज्वला योजना शुरू होने के पहले ही साल 80 फीसदी परिवारों ने गैस सिलिंडर रिफिल करवाया है। समाजशास्त्रियों का कहना है कि इस योजना के तहत सब्सिडी के बावजूद रिफिल सिलेंडर साढ़े 8 सौ रुपए से कम में नहीं मिलता। बीपीएल परिवारों के लिए यह एक बड़ी रकम है। उनके जीवन की सबसे बड़ी प्राथमिकता पूरे परिवार के लिए दो जून की रोटी जुटाना है।

 

बैंक खाता और बीपीएल कार्ड जरूरी

 

इस योजना के अंतर्गत उन महिलाओं को मुफ्त गैस सिलेंडर कनेक्शन प्रदान किया जाता है, जिनकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है और जिनके पास बैंक खाता और बीपीएल कार्ड है। यह योजना पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अंतर्गत चलाई जाती है। इसके अलावा बीपीएल परिवारों को एक एलपीजी कनेक्शन के लिए वित्तीय सहायता भी सरकार उपलब्ध कराती है। इसके तहत प्रति कनेक्शन की कीमत में सिलेंडर, प्रेशर रेगुलेटर, बुकलेट, सेफ्टी हाउस आदि शामिल होता है। इसे सरकार वहन करती है। लाभार्थियों को चूल्हा खुद खरीदना पड़ता है। इस योजना के लाभार्थियों की पहचानसामाजिक आर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना 2011” के आधार पर की जाती है।

 

 

50 फीसदी लोग नहीं भरवा रहे सिलेंडर

 

डीलर्स के अनुसार जिन लोगों ने उज्जवला योजना के तहत कनेक्शन प्राप्त किए थे, उनमें से 60% से अधिक लोग गैस सिलेंडर रिफिल ही नहीं करा रहे हैं। मध्यम वर्गीय लोग भी अब सिलेंडर लेने से हिचकिचाते हैं। ऐसे में सिलेंडरों की खपत पर भी असर पड़ा और वर्तमान में करीब 20 प्रतिशत सेल भी गिर चुकी है। खास बात यह है कि पिछले दो साल में सिलेंडर के दाम लगभग दोगुने हो चुके हैं। जो रसोई गैस सिलेंडर जून 2020 में करीब 594 रुपए का मिल रहा था, वह अब 1056.50 रुपए का मिल रहा है।  नवंबर 2021 में सिलेंडर के दाम 933 रुपए थे   नवंबर 2020 में इसी घरेलू सिलेंडर के दाम 618 रुपए के करीब थे। 

 

एक करोड़ से ज्यादा ने साल में एक बार ही भरवाया सिलेंडर

 

प्रधानमंत्री उज्जवला योजना (पीएमयूवाई) के तहत गत वित्त वर्ष में प्रति उपभोक्ता रसोई गैस के चार सिलेंडर से कम की खपत रही है। यानी, इस योजना के तहत गरीब परिवार की लाभार्थी महिलाएं एक साल में चार से कम रसोई गैस सिलेंडर भरवा पा रही हैं। इनमें एक करोड़ सात लाख लाभार्थी महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने पूरे साल (2021-22) में सिर्फ एक बार सिलेंडर भरवाया है। जबकि, करीब 90 लाख महिलाएं सालभर में एक सिलेंडर भी नहीं भरवा सकीं हैं। केंद्र सरकार की तीन कंपनियां, हिंदुस्तान पेट्रोलियम (एचपीसीएल), भारत पेट्रोलियम (बीपीसीएल) और इंडियन ऑयल (आईओसी) ने पांच मई, 2022 को एक आरटीआई के जवाब में यह जानकारी दी है। इसमें एचपीसीएल ने बतया है कि प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत वित्त वर्ष 2021-22 में प्रति उपभोक्ता 3.70 सिलेंडर की खपत रही है। इसी तरह आईओसी की लाभार्थी महिलाओं ने 3.6 सिलेंडर बीपीसीएल लाभार्थी महिलाओं ने सालभर में 3.92 सिलेंडर भरवाएं हैं।

जानकारी के मुताबिक एचपीसीएल की 27.58 लाख लाभार्थी महिलाओं ने गत वित्त वर्ष में एक बार रसोई गैस सिलेंडर भरवाया है। जबकि, आईओसी की 52 लाख और बीपीसीएल की 28.56 महिलाओं ने सिर्फ एक बार सिलेंडर भरवाया है। पूरे साल में एक सिलेंडर भी नहीं भरवा पाने के मामले में एचपीसीएल की नौ लाख से अधिक, आईओसी की 65 लाख और बीपीसीएल की 15.96 लाख लाभार्थी महिलाएं शामिल हैं।

 

एक करोड़ नए रसोई गैस कनेक्शन दिए

 

आरटीआई के जवाब में बताया गया कि तीनों पेट्रोलियम कंपनियों ने गत वित्त वर्ष में पीएमयूवाई के तहत कुल एक करोड़ नए रसोई गैस कनेक्शन जारी किए हैं। इसमें एचपीसीएल ने 25 लाख, आईओसी ने 50 लाख और बीपीसीएल ने 25 लाख गरीब परिवारों की महिलाओं को नए कनेक्शन दिए। एक अप्रैल, 2022 के आंकड़ों के अनुसार, एचपीसीएल के पास 2.40 करोड़, आईओेसी के पास 4.24 करोड़ और बीपीसीएल के पास 2.35 करोड़ कनेक्शन हैं। देशभर में पीएमयूवाई के तहत कुल 8.99 करोड़ लाभार्थी महिलाएं हैं। वहीं 24 नवंबर, 2022 तक पीएमयूवाई के तहत कुल कनेक्शनों की संख्या बढ़कर 9,56,57,999 पर पहुंच गई है।

 

98,713 करोड़ रुपए की दी सब्सिडी

 

जानकारी के मुताबिक, केंद्र सरकार ने 2016-17 से दिसंबर, 2021-22 तक पीएमयूवाई के तहत गरीब परिवारों को रसोई गैस कनेक्शन देने की एवज में 98,713 करोड़ रुपए से अधिक की सब्सिडी दी है। इसमें बीपीसीएल ने 2016-17 से 2021-22 में 28,417.79 करोड़ की सब्सिडी दी है। जबकि, एचपीसीएल ने 2017-18 से दिसंबर, 2021-22 के दौरान 24,445 करोड़ और ओआईसी ने 45,851 करोड़ रुपये की सब्सिडी लाभार्थियों को दी है।

राज्यमंत्री ने बताए आंकड़े

 

केंद्र सरकार ने बीते दिन संसद में उज्ज्वला योजना के के तहत दिए गए गैस कनेक्शन की रिफिलिंग के आंकड़े बताए. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस राज्यमंत्री रामेश्वर तेली ने राज्यसभा को एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि उज्ज्वला योजना के 4.13 करोड़ लाभार्थियों ने एक बार भी रसोई गैस सिलेंडर को रिफिल नहीं करवाया है। वहीं, 7.67 करोड़ लाभाथिर्यों ने एक ही बार सिलेंडर भरवाया है। विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने उज्ज्वला योजना के लभार्थियों से जुड़ी जानकारी मांगी थी।

 

साल दर साल का आंकड़ा

 

रामेश्वर तेली ने बताया कि वर्ष 2017-18 के बीच 46 लाख उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों ने एक भी सिलेंडर रिफिल नहीं कराया। वहीं, एक बार रिफिल कराने वालों का आंकड़ा 1.19 करोड़ रहा। राज्यमंत्री के अनुसार, 2018-19 के दौरान 1.24 करोड़, 2019-20 के दौरान 1.41 करोड़, 2020-21 के दौरान 10 लाख और 2021-22 के दौरान 92 लाख लाभार्थियों ने एक बार भी सिलेंडर नहीं भरवाया। साथ ही उन्होंने एक बार सिलेंडर रिफिल कराने वालों को भी आंकड़े दिए।

 

कितनी मिलती थी सब्सिडी

 

रामेश्वर तेली ने बताया कि साल 2018-19 के दौरान 2.90 करोड़, 2019-20 के दौरान 1.83 करोड़, 2020-21 के दौरान 67 लाख और 2021-22 के दौरान 1.08 करोड़ ज्ज्वला योजना के लाभार्थियों ने केवल एक बार ही सिलेंडर रिफिल कराया। साथ ही उन्होंने बताया कि साल 2021-22 के दौरान कुल 30.53 करोड़ घरेलू गैस उपभोक्ताओं में से 2.11 करोड़ ने एक बार भी गैस सिलेंडर रिफिल नहीं कराया है। वहीं,  2.91 करोड़ ग्राहकों ने एक बार घरेलू गैस सिलेंडर भरवाया है। अप्रैल 2020 तक उज्ज्वला गैस का सिलेंडर भराने पर गरीबों को वापस 162 रुपये की सब्सिडी मिलती थी।

 

 

अब केवल 200 रुपए मिलेगी केंद्र से सब्सिडी

 

सरकार ने उज्ज्वला योजना के तहत 9.5 करोड़ से अिधक मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन बांटे हैं। इन सभी लोगों को एलपीजी सब्सिडी के रूप में 200 रुपए प्रति सिलेंडर तय है। सब्सिडी सालाना 12 सिलेंडर पर देने का नियम सरकार ने बनाया है। अब 21 मई 2022 से 2022-23 के लिए सरकार  ने ये नियम तय किए हैं। सरकार उज्ज्वला योजना के तहत गरीब परिवार की महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन देती है। 

 

राजस्थान में 500 रुपए में सिलेंडर देने की घोषणा

 

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अप्रेल 2023 से राजस्थान में उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को साल में 12 गैस सिलेंडर 500 रुपए में देने की घोषणा की है। ऐसे में अब सरकारी तंत्र कसरत करने में जुट गया है, क्योंकि शहरों की तुलना में गावों में उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों की संख्या 10 गुना अधिक है।